सुखदायकमां शारदा समूह को 3 माह में हुआ 25 हज़ार तक का लाभ, तो पारो समूह को इस सीजन में 15 हज़ार से ज्यादा की कमाई की उम्मीद
कोरिया ग्रामीण अर्थव्यवस्था को मजबूत बनाने और महिलाओं को आजीविकामूलक गतिविधियों से जोड़कर सशक्त करने का काम शासन की नरवा, गरवा, घुरवा और बाड़ी तथा गोधन न्याय योजना बखूबी कर रही हैं। इन योजनाओं के तहत गौठानों में विभिन्न आजीविका मूलक गतिविधियां संचालित हो रही है जिससे ग्रामीण परिवारों को आय का आसान रास्ता मिला है जिसकी सफलता बयां कर रही हैं कोरिया जिले के विकासखण्ड बैकुण्ठपुर के आनी गौठान की मां शारदा स्व सहायता समूह तथा सोनहत के घुघरा गौठान की पारो महिला स्व सहायता समूह की दीदियां। इन समूहों की कुछ महिलाओं ने आजीविका के रूप में मशरूम उत्पादन कार्य को चुना, कम समय और लागत से अधिक लाभ मिलने से ये महिलाएं लगन से मशरूम उत्पादन कर रहीं हैं।
मां शारदा समूह की कुल 10 महिलाएं गौठान में ही राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन बिहान से जुड़कर गौठान में कई प्रकार के कार्य कर रही हैं और अपने आजीविका का संचालन कर रहीं हैं। समूह की अध्यक्ष प्रभा बतातीं हैं कि समूह की कुछ महिलाओं ने मशरूम उत्पादन के बारे में सोचा तथा बिहान के द्वारा प्रशिक्षण प्राप्त होने के पश्चात कार्य मे जुट गईं। 4 हजार की लागत लगाकर विगत 3 महिनों से मशरूम उत्पादन का कार्य कर रहीं महिलाओं ने अब तक 25 हजार रुपए का शुध्द लाभ भी प्राप्त कर लिया है। इसी प्रकार पारो स्व सहायता समूह की महिलाओं में सचिव उदेश्वरी ने 4 हजार रुपए से मशरूम उत्पादन का कार्य शुरू किया है। वे बताती हैं कि पिछले सीजन में उन्हें 9 हजार का शुध्द लाभ हुआ था तथा वर्तमान में 15 हजार रुपए तक के लाभ होने का अनुमान है।
महिलाओं ने कहा अपने पैरों पर खड़ा होना है सुखदायक, जरुरी आवश्यकताएं अब हो रहीं पूरी
समूह की महिलाएं बतातीं हैं कि घरेलू कामकाज से बाहर निकलकर अपने पैरों पर खड़ा होना सचमुच सुखदायक होता है। पहले हमारे पास स्वयं की आमदनी का कोई साधन नहीं था, लेकिन जब से बिहान से जुड़े हैं, गतिविधियों से प्राप्त आमदनी को देखकर बहुत अच्छा महसूस होता है। आज हम बच्चों के पढ़ाई-लिखाई, घर की अन्य आवश्यकताएं पूरा कर पा रहीं हैं, साथ ही बचत को भविष्य के लिए सहेज कर रख रहीं हैं, इसके लिए हम शासन का हृदय से धन्यवाद करतीं हैं।
ऐसे तैयार होता है गौठान में मशरूम-
मां शारदा स्वसहायता समूह की सचिव श्रीमती सौम्या बताती हैं कि समूह द्वारा आयस्टर मशरूम का उत्पादन किया जा रहा है। मशरूम उत्पादन हेतु गेहूं के भूसे को निर्धारित मात्रा में फॉर्मेलिन पाउडर तथा वॉवेस्टिंग लिक्विड के साथ रातभर पानी में भिगाकर रखा जाता है। सुबह धूप में सुखाने के बाद प्लास्टिक की थैलियों में लेयर बाई लेयर बीच-बीच में मशरूम बीच भरकर कमरे में लटका दिया जाता है, 15 से 20 दिन के बाद जब मशरूम तैयार होने लगता है तो प्लास्टिक थैलियों को बाहर से हटाया जाता है। इसके बाद लगभग सप्ताहभर के बाद मशरूम पूरी तरह तैयार हो जाता है, वे बताती हैं कि ये सब सामान हमें स्थानीय बाजार में ही मिल जाता है। जिससे कम लागत में अधिक फायदा हो रहा है।